Gunjan Kamal

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स्कूल जाने से पहले

मेरी सच्ची साथी! इससे पहले जब मैं तुमसे मिलने आई थी तब मैंने अपनी मां की यादों में सहेज कर रखी बातें तुम्हारे साथ साझा की थी। उसी को आगे बढ़ाते हुए आज मैं अपने स्कूल जाने के पहले की कुछ घटनाएं तुम्हारे साथ साझा करूंगी जिनके कारण मैं अपनी उम्र से पहले ही स्कूल जाना शुरू कर दी थी।


मेरी सच्ची साथी! आज जब मैं दो बच्चों की मां हूं और अपने बच्चों को जब पहली बार स्कूल छोड़ने गई थी तब भी  मुझे यह याद  है कि बहुत सारे ऐसे बच्चे मैंने देखे थे जो अपने स्कूल के पहले दिन ही नही बल्कि और दिन भी  रोते ही  रहते थे। उन बच्चों के मां की तरह मुझे तो यह रोना - धोना झेलना ना नहीं पड़ा और शायद! कहीं ना कहीं पर इसकी वजह मैं ही थी।


मेरी सच्ची साथी! तुम नहीं समझी ना, चलो तुम्हें समझाती हूॅॅं। पहले तुम्हें अपने बचपन की बात बताती हूॅं। तुम सोच रही होगी कि उस दिन मां को जब मैं नहीं मिल रही थी और जब मैं उनको मिली तो पहले तो उन्होंने मुझे सीने से लगाया लेकिन उसके बाद मुझे डांट या फिर मार भी पड़ी होगी? तुम जैसा सोच रही हो ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ था क्योंकि मेरी मां मेरी इस हरकत पर आंखों में आंसू लिए मुस्कुराए ही जा रही थी। तुम्हें यकीन नहीं आ रहा होगा लेकिन यह बिल्कुल सच  है, जिसकी पुष्टि मेरे बड़े भैया और पापा ने भी की है।


मेरी सच्ची साथी! वह पहला दिन नहीं था जो हरकत मैंने की थी, उससे पहले भी यह हरकतें मैं कर चुकी थी लेकिन उससे पहले किसी की नजर में मैं नहीं आई थी। उसके बाद भी मेरी मां और मेरे आस - पड़ोस के लोगों ने मेरे भैया के पुराने बैग को अपने दोनों कंधे पर टांगे हुए घर के पीछे बने उस चबूतरे के पास जाते हुए मुझे देखा। उम्र कम थी लेकिन मेरी पढ़ने की ललक और जिज्ञासा ने मेरी मां को पास के ही एक कान्वेंट स्कूल में नामांकन कराने के लिए मजबूर कर दिया था।


मेरी सच्ची साथी! मेरी मां कहती है कि मेरे स्कूल जाने की पहले की कहानी यही है जिसके कारण मेरा स्कूल जाना उम्र से पहले ही शुरू हो गया था। साथ ही मेरी मां यह भी कहती है कि उन्हें क्या डर था कि कहीं इतने सारे बच्चों को रोते हुए देखकर मैं भी उनके जैसे रोने ना लगूं? वह आज भी मुस्कुराते हुए कहती हैं कि  उन्हें यह अवसर मैंने कभी भी नहीं दिया क्योंकि जब भी वह मुझे स्कूल छोड़ने जाती थी मेरे चेहरे पर मुस्कान होती थी और जब स्कूल खत्म होने के बाद वह मुझे लेने आती थी वही मुस्कान मेरे चेहरे पर चिपकी हुई देखकर उनके चेहरे पर भी हंसी आ जाती थी। उन्होंने मुझे और मेरे भतीजे तक को भी यह बातें बताएं और कहा कि और भी औरतें मेरी तारीफ करते हुए यह कहती थी कि आपकी बेटी तो बहुत अच्छी है, स्कूल आने और जाने के लिए रोती ही नहीं है बल्कि और बच्चों को  तो जबरदस्ती स्कूल लाना पड़ता है।


मेरी सच्ची साथी! उस कान्वेंट स्कूल में मैंने ज्यादा दिन नहीं पढ़ा। मां कहती है कि मुश्किल से दो साल पढ़ने के बाद ही मुझे वहां से निकालकर दूसरे स्कूल में दाखिला दिलवाना पड़ा जिसके पीछे की कहानी जब मैं अगली बार तुमसे मिलूंगी तब तुम्हारे साथ साझा करूंगी, जब तक वापस तुमसे मिलने ना आऊं तब तक के लिए मुझे जाने की इजाजत दो।


     🙏🏻🙏🏻 बाय 🙏🏻🙏🏻


गुॅंजन कमल 💗💞💗


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7 Comments

Radhika

09-Mar-2023 01:46 PM

Nice

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अदिति झा

03-Feb-2023 01:22 PM

👏👌

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